मैंने भी खयालातों में बसाया था तुझे 
मैंने भी अहसासों से सहलाया था तुझे     
गर तूने महसूस न किया तो मेरी क्या खता 
अपने जज्बातों के झूले में झुलाया था तुझे। 
क्या होता गर तू न होता 
कशिश-ए-प्यार का आमद नहीँ होता 
क्या होता इन आरजू और तमन्नाओं का         
गर तेरे आमद से ये घर रोशन नहीं होता। 
 
