6/28/2014

तन्हाई की शहनाई

मैंने भी खयालातों में बसाया था तुझे
मैंने भी अहसासों से सहलाया था तुझे    
गर तूने महसूस न किया तो मेरी क्या खता
अपने जज्बातों के झूले में झुलाया था तुझे।

क्या होता गर तू न होता
कशिश-ए-प्यार का आमद नहीँ होता
क्या होता इन आरजू और तमन्नाओं का        
गर तेरे आमद से ये घर रोशन नहीं होता।