भव्य भूमि इस भारत में, भूत-भविष्य मध्यांतर में, आज कर्म की बेला है, आ जा प्यारे भारतवासी, चला-चली का मेला है. जय भारत और जय भारतीय
कविता का उद्वेग सरल, जब भाव-प्रवण दिल होय प्रबल। मुखरित अनुभव होय प्रकट तब, अक्षर में ढल जाय सरल।।