भव्य भूमि इस भारत में, भूत-भविष्य मध्यांतर में, आज कर्म की बेला है, आ जा प्यारे भारतवासी, चला-चली का मेला है. जय भारत और जय भारतीय
नारायण का रूप ये नर है, मन की जोत इसमें भी प्रखर है, सकल सम्पदा का स्वामी यह, जगती का अनुपम धरुहर है ।।
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