1/16/2015

फिर लोग क्यों बदल जाते हैं?

ऋतुओं के आने से, ऋतुओं के जाने से,
जब पेड़ और पौधे नहीं बदलते,
फिर लोग क्यों बदल जाते हैं?

पत्तों पतंगों को,
सतरंगी कपड़ों को,
कामिनी की जुल्फों को,
लहरानेवाली हवा नहीं बदलती,
फिर लोग क्यों बदल जाते हैं?

पर्वत की शान नहीं बदलती,
सागर की मौजें नहीं बदलती,
लोगों की जान नहीं बदलती,
फिर लोग क्यों बदल जाते हैं?

चंद्र की चांदनी वही है,
कानन और केहरि वही है,
फिर सूरज के किरण क्यों बदल जाते हैं,
फिर लोग क्यों बदल जाते हैं?

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