4/09/2015

मन को बांधना क्यों

मन का मनका माला में गुंथकर,
मालिन चतुर बाजार चली ।
ले लो प्यारे ग्राहक बाबू,
आई आज अनारकली ।।

सुन मालिन तू चतुर सयानी,
ठगने आज संसार चली ।
महामोहमय मन को गुंथकर,
माला तूने रची भली ।

एक होय तो हृदय लगाऊँ,
दो को बगल पसार करूँ ।
तीन-चार को सह लूँ केहि विधि,
पर हजार क्या आचार करूँ ?

सुन बाबू तू मेरी बतिया,
एक माली की है यह बगिया ।
फूल हजार खिले हैं लेकिन,
एक ध्येय पर खिली है बगिया ।

सुंदरता से संसार भरा है,
एक न दूजा हुआ खड़ा है ।
अतुल जगत यह अतुल जीव से,
अतुलित अनुपम घाट भरा है ।

हर मनके की अलग कहानी,
बात नई या याद पुरानी ।
मनके जैसा मन कर अपना,
सबके मन की एक ही नानी ।।

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