4/15/2015

शील अर्थात सदाचार का महत्त्व

अंतः जटा बहिः जटा जटायाम जटितापजा ।
तं तं पिच्छामि गोतमोति कं विजटयेजटन्ति ।
सीलं पटिट्ठाय नरो सपन्नो चित्तं तन्हा न भावये ।
आतापी निपको भिक्खु तं विजटयेजटन्ति ।।

(संयुत्त निकाय, बाम्हन वग्ग, जटिल सुत्त)

जब गौतमबुद्ध से जटिल ब्राह्मण ने पूछा कि अंदर-बाहर सभी ओर से जटिल इस संसार में कौन ऐसा पुरुष है जो इस जटिलता को काटकर बाहर आ सकता है, तो उस जटिल ब्राह्मण को जवाब देते हुए गौतम बुद्ध ने कहा कि जो व्यक्ति अपने जीवन के व्यवहार में सदाचारी है तथा जो सभी प्रकार की इच्छाओं को त्याग चुका है अर्थात अपने आपको उस विराट प्रकृति पर समर्पित कर चुका है, जो हर अवस्था में स्थिर रहनेवाला है तथा जो सांसारिक व्यवहारों में निपुण हो चुका है; ऐसा व्यक्ति बड़ी आसानी से इस जटिलता को काटकर बाहर आ सकता है ।

इस सदाचार के प्रभाव को स्पष्ट करते हुए संत कबीरदास भी कहते हैं-

"शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान ।
तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ।।"

अतः हम केवल ख़ास-ख़ास मौकों पर ही नहीं बल्कि जीवन के सामान्य और दैनिक क्रियाकलाप में भी सदाचार का पालन करें तभी हमारा जीवन जटिलता से सहजता की ओर अग्रसर हो सकता है ।

धन्यवाद.....

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